भगवत भक्ति से प्रशस्त हो जाता है मोक्ष का मार्ग - आनन्द जी महाराज
संवाददाता__नरसिंह यादव, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
श्रीमद्भागवत कथा देवताओं को दुर्लभ है हम लोग परम सौभाग्यशाली हैं की भगवत कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।भगवत भक्ति से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। धूंधकारी जैसी खल का भी भागवत कथा श्रवण करने से उद्धार हुआ था।
उक्त बातें गगहा विकास खंड के ढरसी में चल रही नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा में परम पूज्य वृन्दावन धाम से पधारे आनन्द जी महाराज ने व्यास पीठ से उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कही उन्होंने कहा कि माता पिता , बड़े भाई व गुरू की बातें बिना कोई विचार किए मान लेनी चाहिए लेकिन आजकल लोग इन लोगों से राय लेने की बजाय ससुराल पक्ष से राय लेना पसंद कर रहे हैं जिसका परिणाम आप सबके सामने है। उन्होंने कहा आत्मदेव बहुत बड़े विद्वान थे उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी जिसको लेकर बहुत चिंतित थे कि अभी तक तो मैं अपने पूर्वजों का पिंडदान कर दे रहा हूं लेकिन मेरे मर जाने के बाद मेरे पूर्वज व मैं पिंडदान से वंचित हो जाएंगे। उन्होंने प्रण किया कि अब जंगल में चलकर वहीं तपस्या करेंगे और जब तक पुत्र प्राप्ति का कोई साधन नहीं मिलेगा मैं घर नहीं आऊंगा और वह जंगल की ओर निकल लिए घने जंगल में तपस्या करने लगे कुछ दिनों बाद एक संन्यासी बाबा आए और पूछे आप इस घने जंगल में क्यों तपस्या कर रहे हैं उन्होंने कहा कि महाराज मेरे पास सब कुछ है लेकिन कोई संतान नहीं है। सन्यासी बाबा ने मस्तक की तरफ देखा और कहा कि आपको इस जन्म में क्या सात जन्मों तक पुत्र प्राप्ति नहीं होगी। इतना सुनते ही आत्मदेव ने संन्यासी बाबा का पैर पकड़ लिया और उनके सर पर अपना पैर पटकने लगे संन्यासी बाबा ने उन्हें आम का एक फल दिया और कहा ले जाओ इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना एक सुन्दर तेजस्वी बालक पैदा होगा आत्मदेव महाराज फल को लिए और घर पहुंच पत्नी को सन्यासी बाबा का प्रसाद दिया और कहा कि इसे खा लो संन्यासी बाबा का प्रसाद है जल्द ही पुत्र की प्राप्ति होगी लेकिन उनकी पत्नी फल को लेकर तरह तरह की विचार करने लगी तभी उनकी बहन आ गयी उसने कहा दीदी आप क्यों परेशान हैं मैं गर्भवती हूं जो पुत्र मुझसे पैदा होगा मैं आपको दे दूंगी और आप मुझे धन दे देना फल गाय को खिला दो बहन की बात सुनकर ध़ूंधरी ने ऐसा ही किया। कुछ समय बाद बहन को बेटा हुआ वह लाकर अपनी बहन को दे दी और उसका नाम धूंधकारी रखा गया तथा फल खाने वाली गाय ने भी पुत्र को जन्म दिया उसका नाम गोकर्ण रखा गया। धूंधकारी की सोहरत बिगड़ती गयी वह दुराचारी होता गया मां बाप को मारने पीटने व गाली देना लगा मदिरा का सेवन करने लगा पिता जी उसके आतंक से धाम को चले गये इधर उसने अपनी मां को ही मार डाला। बच्चों को अच्छे संस्कार देने से सच्चे संस्कारी होते हैं।इस अवसर पर आचार्य अतुल दूबे, आचार्य शशिकांत मिश्र, मुख्य यजमान घनश्याम तिवारी व श्रीमती गिरिजा देवी, ज्वाला तिवारी, योगेश तिवारी,वैभव तिवारी, शिवशंकर ओझा,राजन शुक्ला, संदीप मोदनवाल, प्रदीप मोदनवाल, रत्नाकर त्रिपाठी,अनूप दूबे, राधेश्याम तिवारी, रमेश तिवारी सहित अनेकों लोग मौजूद रहे।