श्रेष्ठ समाज की निर्माता पुरुष नही, नारी हैं : आचार्य आनन्द जी महाराज

श्रेष्ठ समाज की निर्माता पुरुष नही, नारी हैं : आचार्य आनन्द जी महाराज

संवाददाता__नरसिंह यादव, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

 शास्त्रों में नारी को देवी स्वरूपा कहा गया हैं। ब्रह्मा की रचना में ये उत्कृष्ट रचना हैं। जो त्याग, ममता, दया, करुणा, प्रेम की प्रतिमूर्ति है। इनके जैसा त्याग की मूर्ति संसार  में कोई नही हैं। जो अपने परिवार के लिए सारा सुख त्याग कर दिन रात उनके सुख की कामना करती है। जो कठिन परिस्थिति में भी अपने पति, पुत्रों का उत्साह बढ़ाती हैं, इसलिए हमारे शास्त्रों ने स्त्रियों को देवी कहा हैं। ये भोग्या नही ये आदरणीया हैं, पूजनिया है,ये नारी नही,नारायणी है। नारी को भोग का साधन समझना महापाप है। भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान ईश्वर से  भी बढ़कर हैं। ये सभ्य समाज के निर्माण की आधार है।श्रेष्ठ समाज की निर्माता पुरुष नही बल्कि नारी है। जो उत्तम आचरण से संपन्न संतानों को जन्म दे कर श्रेष्ठ समाज की निर्माण करती हैं । उक्त बातें गगहा विकास खंड के ढ़रसी ग्राम में चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन वृन्दावन धाम से पधारे परम पूज्य आचार्य आनन्द जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को कथामृत का रसपान कराते हुए कहा जिस राष्ट्र में उत्तम आचरण संस्कार से सम्पन्न स्त्रियां निष्ठा पूर्वक अपने स्वधर्म का पालन करती हैं। वहां तेजस्वी,धर्मनिष्ठ, विद्वान, परोपरी संताने होती है। जो धर्म और राष्ट्र के उत्थान कर सभ्य समाज का निर्माण करते हैं। पूज्य महराज श्री ने दुःख प्रकट करते हुए कहा कि आज हमारी माताएं बहनें फिल्मों की धर्मभ्रष्टा नायिकाओं को अपना आदर्श मानकर अपने स्वरूप भूल गई है,जो अत्यंत दुःख का विषय हैं। किसी ने कहा है अगर किसी राष्ट्र और धर्म को नष्ट करना हो, तो वहा की स्त्रियों को दूषित कर दो। उनके मन मे मलीनता भर दो, उनके अंतः करण में पाप भर दो।जिससे वो अपने देवित्व रूप को भूल कर, अपने को केवल भोग्या समझ बैठे। जिससे उस समाज राष्ट्र का शीघ्र ही पतन हो जाता हैं। इसलिए हैं माताओं! हे बहनों! आप के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आप ही हैं जो हमारे धर्म का राष्ट्र का उत्थान कर सकती हैं,और कोई दूसरा उपाय नहीं दिखता,इसलिए माताओं एवं बहनों को अपने शील की रक्षा करते हुए अपने कुल का गौरव बढ़ाए। आप किसी कुल की मर्यादा हो सम्मान हो। ऐसे ही वस्त्रों को पहने जिससे कुल की मान मर्यादा बनी रहे। वस्त्रों का विन्यास अंगो को ढकने के लिए होता है ना की प्रदर्शन! उन फिल्मी नगर वधुओ (नायिकाओं) को अपना आदर्श ना माने। आप कुलवधु हो ना कि नगर वधु। आदर्श मानना है तो माता सीता, माता अनसूया, माता सावित्री को माने।

जिससे आप के यहां महाराणा प्रताप,  छत्रपतिशिवा जी, श्रीराम, श्रीकृष्ण, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह जैसे सुपुत्र जन्म लेंगे और आप भी ऐसे संतानों को मां कहा कर अपने आप गौरवान्वित महसूस करेंगी।

इस अवसर पर आचार्य अतुल दूबे जी, आचार्य शशिकांत मिश्र जी मुख्य यजमान श्री घनश्याम तिवारी जी वा श्रीमती गिरिजा देवी जी ,अभिषेक शुक्ल, योगेश तिवारी, वैभव तिवारी, अमित ओझा, राम नगीना तिवारी, रमेश तिवारी,रत्नाकर तिवारी, अनूप दूबे, राधेश्याम तिवारी, सुधाकर तिवारी मणिकांत तिवारी, अनमोल तिवारी, ज्वाला तिवारी, संतोष शुक्ल ,शिवशंकर ओझा सहित अनेक लोग उपस्थित रहेथे।