गौरीगंज तहसील का ‘सफेद हाथी’ शौचालय: पानी–प्रकाशहीन व्यवस्था से दुर्गंध में डूबा जनसुविधा केंद्र

गौरीगंज तहसील का ‘सफेद हाथी’ शौचालय: पानी–प्रकाशहीन व्यवस्था से दुर्गंध में डूबा जनसुविधा केंद्र

आर.वी.न्यूज़ संवाददाता, महावीर 


जनसुविधा पर भारी c कुप्रबंधन: तहसील परिसर का शौचालय बना ‘दुर्गंध का अड्डा’

अमेठी। गौरीगंज तहसील परिसर में स्थित सार्वजनिक शौचालय की स्थिति आज एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे सरकारी धन से बनी सुविधाएँ रखरखाव के अभाव में बेकार होकर ‘सफेद हाथी’ बन जाती हैं। शौचालय के लिए बने दो अलग-अलग ब्लॉक—एक नया और एक पुराना—दोनों की हालत ऐसी है कि लोग मजबूरी में ही उसका इस्तेमाल करते हैं, और फिर नाक दबाकर बाहर निकलने को मजबूर।


नया शौचालय, पर सुविधाएँ शून्य

नये शौचालय भवन को दो हिस्सों में बनाया गया है, लेकिन उसकी हालत किसी जर्जर ढांचे से कम नहीं।

  • पहले हिस्से में दो कमोड लेट्रिन, एक साधारण लेट्रिन और एक यूरिनल संरचना है,

  • दूसरे हिस्से में भी इसी तरह के चार कक्ष हैं,

  • पर इन सबमें एक भी ड्रॉप पानी का नहीं!

न लेट्रिनों में पानी, न वाशबेसिन में, न अंदर और न बाहर। दोनों हिस्सों में लगे बल्ब भी सिर्फ शोभा की वस्तु बने हैं—स्विच दबाने पर कोई हरकत नहीं।


पुराना शौचालय—नई बदहाली से भी बदतर

पुराने शौचालय की हालत तो नए से भी ज्यादा चिंताजनक है। एक लेट्रिन, दो यूरिनल और एक बाथरूमनुमा संरचना पूरी तरह कूड़ा, पेशाब और दुर्गंध से भरी हुई है।
यहां भी—

  • न पानी का इंतज़ाम,

  • न प्रकाश की सुविधा,

  • न सफाई का कोई नियमित सिस्टम।

दुर्गंध इतनी तीव्र है कि अंदर झांकते ही सांस रोकनी पड़ती है।


सफाई कर्मचारी भी बेबस: “उधर मैं नहीं जाता…”

तहसील परिसर में एक सफाईकर्मी बड़ी झाड़ू लिए मिला। जब उससे पूछा गया कि इन शौचालयों की सफाई क्यों नहीं होती, तो उसने बेझिझक कहा— “उधर मैं नहीं जाता।” जब पूछा गया कि क्या इस भाग के लिए कोई दूसरा कर्मचारी है, तो उत्तर मिला— “पता नहीं।” और यह कहना गलत नहीं होगा— जब पानी की सप्लाई ही नहीं, तो सफाई भला कैसे होगी?


वातावरण में घुलती बदबू, प्रशासन मौन

इस शौचालय से उठती दुर्गंध पूरे परिसर के वातावरण में मिलती रहती है। लोग सांस रोककर जल्दी-जल्दी बाहर निकलते हैं, मानो कोई जहरीला क्षेत्र पार कर रहे हों। यह दृश्य इस बात का सबूत है कि एक महत्वपूर्ण और जरूरी सुविधा को भी बार-बार नजरअंदाज किया जा रहा है।


जिम्मेदारी किसकी? क्या कोई जवाब देगा?

सवाल बड़ा है— इतनी महत्वपूर्ण सुविधा के रखरखाव की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?
तहसील प्रशासन?
नगर पंचायत?
या ठेकेदार?

जनता उम्मीद में है कि संबंधित अधिकारी इस दुर्दशा पर अब तो ध्यान देंगे और इस “सफेद हाथी” बने शौचालय को वास्तव में जनसुविधा का केंद्र बनाएंगे।