वन 2025 पर पर्यावरणीय लेखांकन: भारत की हरियाली का आर्थिक और सामाजिक लेखा-जोखा

चंडीगढ़।
भारत की हरियाली अब सिर्फ प्राकृतिक संपदा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने 25 सितंबर 2025 को चंडीगढ़ में आयोजित 29वें केंद्रीय एवं राज्य सांख्यिकी संगठनों (COCSSO) सम्मेलन के दौरान “वन पर पर्यावरण लेखा – 2025” शीर्षक से अपना आठवां वार्षिक पर्यावरणीय लेखांकन प्रकाशन जारी किया। यह पहला अवसर है जब किसी रिपोर्ट को विशेष रूप से वनों पर समर्पित किया गया है।
यह प्रकाशन संयुक्त राष्ट्र के System of Environmental-Economic Accounting (SEEA) ढांचे पर आधारित है, जो वनों की भौतिक संपत्ति, विस्तार, स्थिति और सेवाओं को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करता है। रिपोर्ट दो खंडों में विभाजित है—
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भाग I: पद्धति और राष्ट्र-स्तरीय आंकड़े
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भाग II: राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर दशकीय तुलना और केस-स्टडी
भौतिक संपत्ति लेखा: हरियाली का विस्तार
2010-11 से 2021-22 के बीच भारत का वन क्षेत्र 17,444.61 वर्ग किलोमीटर (22.50%) बढ़ा और कुल वन क्षेत्र 7.15 लाख वर्ग किलोमीटर (21.76% भौगोलिक क्षेत्र) तक पहुँच गया।
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सबसे बड़ी वृद्धि: केरल (4,137), कर्नाटक (3,122), तमिलनाडु (2,606 वर्ग किमी)।
यह वृद्धि देशभर में संरक्षण और पुनर्वनीकरण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है।
विस्तार लेखा: वन परिसंपत्तियों का भौगोलिक नक्शा
2013 से 2023 के बीच भारत ने वन विस्तार लेखा में 3,356 वर्ग किलोमीटर की शुद्ध वृद्धि दर्ज की।
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उल्लेखनीय वृद्धि: उत्तराखंड (6.3%), ओडिशा (1.97%), झारखंड (1.9%)।
यह पुनर्वर्गीकरण और सीमा समायोजन से संभव हुआ।
स्थिति लेखा: पेड़ों की ताकत
वन स्थिति लेखा का एक प्रमुख संकेतक "वृद्धि क्षेत्र" (Growing Stock) है, जो जीवित वृक्षों में लकड़ी की मात्रा को दर्शाता है।
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2013–2023 के बीच वृद्धि क्षेत्र में 305.53 मिलियन घन मीटर (7.32%) की बढ़ोतरी।
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प्रमुख योगदान: मध्य प्रदेश (136 मिलियन), छत्तीसगढ़ (51 मिलियन), तेलंगाना (28 मिलियन)।
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केंद्र शासित प्रदेश: अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (77 मिलियन घन मीटर)।
सेवा लेखा: वनों की बहुआयामी भूमिका
प्रोविजनिंग सेवाएं
लकड़ी और गैर-लकड़ी उत्पादों का मूल्य 2011-12 में ₹30.72 हजार करोड़ से बढ़कर 2021-22 में ₹37.93 हजार करोड़ हो गया, जो जीडीपी का 0.16% है।
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शीर्ष योगदानकर्ता: महाराष्ट्र (23.78), गुजरात (14.15), केरल (8.55 हजार करोड़)।
विनियमन सेवाएं
वन कार्बन प्रतिधारण और जलवायु शमन में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
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2015-16 से 2021-22 के बीच इन सेवाओं का मूल्य ₹409.1 हजार करोड़ से बढ़कर ₹620.97 हजार करोड़ (51.82% वृद्धि)।
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यह जीडीपी के 2.63% के बराबर है।
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शीर्ष योगदानकर्ता: अरुणाचल प्रदेश (296), उत्तराखंड (156.6), असम (129.96 हजार करोड़)।
प्रकाशन के स्रोत
यह रिपोर्ट मुख्य रूप से भारतीय वन सर्वेक्षण (ISFR) के द्विवार्षिक आकलनों, वानिकी सांख्यिकी 2021, SEEA-Framework, और राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी पर आधारित है।
हरियाली का खज़ाना
“वन पर पर्यावरण लेखा – 2025” सिर्फ आंकड़ों की रिपोर्ट नहीं, बल्कि यह इस सच्चाई का प्रमाण है कि भारत के जंगल न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र की नींव हैं, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, जलवायु शमन और सांस्कृतिक मूल्यों के भी आधार हैं।
यह पहल वैश्विक स्तर पर भारत को पर्यावरणीय लेखांकन में अग्रणी बनाती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए टिकाऊ विकास की दिशा तय करती है।