किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी नहीं थमे कदम… जर्मनी की धरती पर गूंजा बाराबंकी के बलवीर का नाम, फिर जीता कांस्य पदक

- आर.वी.9 न्यूज़ | संवाददाता, मनोज कुमार
ज़िंदगी जब ठहर सी जाए, तो अक्सर लोग हार मान लेते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने जज़्बे और जुनून से यह साबित कर देते हैं कि हौसले के सामने हर मुश्किल छोटी है। ऐसी ही प्रेरणादायी कहानी है उत्तर प्रदेश के बाराबंकी निवासी बलवीर सिंह की, जिन्होंने किडनी प्रत्यारोपण जैसी कठिनाई से गुज़रने के बावजूद खेल की दुनिया में अपने कदम थमने नहीं दिए। जर्मनी में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए बैडमिंटन में कांस्य पदक जीतकर फिर से जिले और देश का नाम रोशन किया।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
बलवीर सिंह ने रविवार को अमर उजाला कार्यालय पहुंचकर अपनी कहानी साझा करते हुए भावुक होकर कहा—
“अगर जज्बा हो तो कोई बीमारी या कठिनाई इंसान को रोक नहीं सकती। मैंने यह साबित करना चाहा कि ज़िंदगी हार मानने के लिए नहीं, लड़ने के लिए होती है।”
उनकी यह जीत कोई पहली नहीं है। यह उनकी पांचवीं अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि है। अब तक वह भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए बैडमिंटन में दो स्वर्ण, एक रजत और कई कांस्य पदक जीत चुके हैं।
लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के पीछे छिपी है एक लंबी जद्दोजहद। साल 2009 में जब डॉक्टरों ने कहा कि उनकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं, तो जीवन मानो रुक गया। 45 बार डायलिसिस से गुज़रना पड़ा। 2011 में एक अज्ञात दाता से उन्हें जीवन का तोहफ़ा मिला और किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। उसी दिन उन्होंने खुद से वादा किया—
“अब यह ज़िंदगी रुकने नहीं दूंगा, खेल ही मेरी सांसों की ताक़त बनेगा।”
परिवार बना सबसे बड़ा सहारा
बलवीर कहते हैं कि इस कठिन सफर में उनकी पत्नी ममता सिंह, भाई जगवीर सिंह और पूरा परिवार हमेशा साथ खड़ा रहा। भाई ने कर्ज लेकर मदद की, वहीं पत्नी ने हर बार टूटने के बाद उन्हें संभाला। बलवीर की आंखें नम हो जाती हैं जब वह कहते हैं—
“हर पदक सिर्फ मेरा नहीं है, यह मेरी पत्नी, बच्चों और पूरे परिवार का है। माता-पिता का आशीर्वाद और परिवार का हौसला ही मेरी असली ताक़त है।”
उन्होंने अंगदान करने वालों को सच्चा हीरो बताते हुए कहा कि “अगर वो न होते तो आज मैं भी न होता। मेरी जीत दरअसल मानवता की जीत है।”
उपलब्धियों का सफर
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2015 – अर्जेंटीना : स्वर्ण और कांस्य पदक
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2017 – स्पेन : बैडमिंटन एकल में स्वर्ण
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2019 – यूनाइटेड किंगडम : खराब तबीयत के बावजूद रजत
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2023 – ऑस्ट्रेलिया : शानदार प्रदर्शन
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2025 – जर्मनी : हंगरी और ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ियों को हराकर कांस्य
सम्मान और प्रेरणा
बाराबंकी के जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने बलवीर की उपलब्धियों पर गर्व जताते हुए कहा—
“बलवीर सिंह की यह कामयाबी पूरे जिले के लिए गौरव की बात है। उन्हें उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान दिलाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा जा रहा है। उनके प्रमोशन पर भी विचार किया जाएगा। वे युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं।”
बलवीर सिंह की यह यात्रा सिर्फ खेलों की जीत नहीं, बल्कि हिम्मत, उम्मीद और मानवता की जीत है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी उन्होंने यह साबित कर दिया कि ज़िंदगी किसी कठिनाई से नहीं रुकती, बल्कि सच्चे जज्बे और परिवार के सहारे आगे बढ़ती है।
उनकी सफलता हर उस इंसान के लिए संदेश है जो किसी मुश्किल में हार मानने की सोचता है—
“हौसला हो तो कुछ भी असंभव नहीं।”