कृषि में बदलाव: उत्पादकता और लचीलेपन के लिए सरकार की समग्र रणनीति

कृषि में बदलाव: उत्पादकता और लचीलेपन के लिए सरकार की समग्र रणनीति

भारत सरकार ने अनुसंधान संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर की समीक्षाजलवायु के अनुकूल फसल की किस्मों के विकासएक करोड़ किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और बायो-इनपुट संसाधन केंद्रों की स्थापना जैसी पहलों के माध्यम से कृषि उत्पादकता और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रणनीति की रूपरेखा तैयार की है।

इसके अतिरिक्तसरकार के प्रयासों में दालों और तिलहनों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनासब्जी उत्पादन क्लस्टर विकसित करनाकृषि में डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर को लागू करना और नाबार्ड के माध्यम से झींगा पालन का समर्थन करना शामिल है। इन पहलों का उद्देश्य कृषि को आधुनिक बनाना और पूरे क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित करना है। आइए प्रत्येक रणनीति के बारे में संक्षिप्त चर्चा करें कि इन क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं ने कैसे प्रगति की है।

1.   प्राकृतिक खेती

 

वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट में कृषि को प्राथमिकता देते हुए 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव रखा हैताकि उत्पादकतास्थिरता और जैविक उत्पादों के लिए प्रीमियम बाजारों तक पहुंच बढ़ाई जा सके। इस पहल का उद्देश्य किसानों को प्रमाणन और ब्रांडिंग प्रदान करना हैजिससे टिकाऊ कृषि की ओर बदलाव को बढ़ावा मिले।

प्राकृतिक खेती क्या है

प्राकृतिक खेती को "रसायन मुक्त और पशुधन आधारित खेतीके रूप में परिभाषित किया जा सकता है। कृषि-इकोसिस्टम पर आधारितयह एक विविध कृषि प्रणाली हैजो फसलोंपेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है। इससे कार्यात्मक जैव विविधता का मन मुताबिक इस्तेमाल संभव होता है। प्राकृतिक खेती से किसानों की आय बढ़ने के साथ-साथ कई अन्य लाभ प्राप्त होने की संभावना बनती हैजैसे मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बहालीऔर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना।

 

भारत में प्राकृतिक खेती

भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपीपरम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाईके तहत एक उप-मिशन हैजो राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसएके अंतर्गत आता है।

बीपीकेपी का उद्देश्य पारंपरिक स्वदेशी कार्य प्रणालियों को बढ़ावा देना हैजो किसानों को बाहरी रूप से खरीदे गए इनपुट से मुक्ति दिलाती है। यह बायोमास मल्चिंग पर प्रमुख जोर देते हुए ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंगगोबर-मूत्र फॉर्मूलेशन का उपयोगऔर सभी सिंथेटिक रासायनिक इनपुट को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बहिष्कृत करने पर ध्यान केंद्रित करता है।

इस योजना में छह वर्षों (2019-20 से 2024-25) की अवधि के लिए कुल 4645.69 करोड़ रुपये का परिव्यय है।

 

2. दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए सरकारी पहल

 

दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करना भारत सरकार की प्राथमिकता रही हैजिसे विभिन्न पहलों और योजनाओं द्वारा समर्थित किया गया है:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशनतिलहन (एनएफएसएम-ओएस)

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशनतिलहन (एनएफएसएम-ओएसभारत सरकार द्वारा देश में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने और आयात के बोझ को कम करने के लिए लागू किया जा रहा है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2022-23 में तिलहन उत्पादन 41.4 मिलियन टन तक पहुंच गया। खाद्य तेल की घरेलू उपलब्धता 2015-16 में 86.30 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 121.33 लाख टन हो गई है। इससे आयातित खाद्य तेल का प्रतिशत हिस्सा 63.2 प्रतिशत से घटकर 57.3 प्रतिशत हो गया है।

दलहनों और तिलहनों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 2024-25 खरीफ सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपीमें की गई वृद्धि कृषि क्षेत्र को मजबूत करने और किसानों की आर्थिक हित सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इस वर्ष की महत्वपूर्ण बढ़ोतरीविशेष रूप से तिलहन और दलहनों के लिएखेती में लाभप्रदता और स्थिरता बढ़ाने पर सरकार के फोकस पर जोर देती है।

 

दलहनों के लिए एमएसपी के रुझान

तिलहन के लिए एमएसपी का रुझान

 

3. उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्मेंभारत में समय की मांग

 

बॉटम ऑफ फॉर्म

भारत सरकार ने 32 खेत और बागवानी फसलों में 109 नई उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्में पेश करने की एक महत्वपूर्ण पहल की घोषणा की हैजिसका उद्देश्य देश भर में कृषि पद्धतियों में क्रांतिकारी बदलाव लाना है। इन नई किस्मों को फसल उत्पादकता बढ़ाने और स्थिरता सुनिश्चित करते हुए जलवायु की विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने के लिए सावधानीपूर्वक विकसित किया गया है।

2014-15 से 2023-24 के दौरानकुल 2593 उच्च उपज देने वाली किस्में जारी की गईंजिनमें 2177 जलवायु-अनुकूल (कुल का 83%) जैविक और अजैविक तनाव को सहन करने वाली और 150 जैव-फोर्टिफाइड फसल किस्में शामिल हैं। 56 फसलों की 2200 से अधिक किस्मों पर 1.0 लाख क्विंटल से अधिक प्रजनक बीज का उत्पादन किया जा रहा है। जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने से असामान्य वर्षों के दौरान भी उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है।

 

4. कृषि में बदलावडिजिटल फसल सर्वेक्षण में क्रांति लाने के लिए डीपीआई पहल

कृषि में डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआईको लागू करने की सरकार की पहल का उद्देश्य किसानों को लाभ पहुंचाने और कृषि दक्षता बढ़ाने के लिए डिजिटल तकनीक का लाभ उठाकर इस क्षेत्र में क्रांति लाना है। पायलट परियोजनाओं की सफलता से उत्साहित होकरतीन वर्षों की अवधि में राज्य सरकारों के सहयोग से यह राष्ट्रव्यापी पहल की जाएगी।

शुरुआती चरण के हिस्से के रूप मेंखरीफ सीजन के दौरान 400 जिलों में एक डिजिटल फसल सर्वेक्षण किया जाएगा। यह सर्वेक्षण फसल की खेती के पैटर्नभूमि उपयोग और उपज अनुमानों पर विस्तृत डेटा एकत्र करने के लिए डीपीआई का उपयोग करेगा। इन पहलुओं को डिजिटल बनाकरसरकार सब्सिडी के वितरणबीमा कवरेज और आपदा प्रबंधन सहित कृषि रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में सटीकता बढ़ा सकती है।

 

5. जन समर्थ पहलसुलभ किसान क्रेडिट कार्ड के साथ किसानों को सशक्त बनाना

जन समर्थ आधारित किसान क्रेडिट कार्डकिसानों को सरल और सुलभ मानदंडों के साथ किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसीप्रदान करने के लिए डिजाइन की गई एक योजना को संदर्भित करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसानविशेष रूप से वित्तीय सहायता की आवश्यकता वाले किसानइन कार्डों के माध्यम से आसानी से ऋण प्राप्त कर सकें।

किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसीने कृषि ऋण तक पहुंच को सुव्यवस्थित किया है। 31 जनवरी, 2024 तकबैंकों ने 9.4 लाख करोड़ रुपए की सीमा के साथ 7.5 करोड़ केसीसी जारी किए। एक और उपाय के रूप में, 2018-19 में मत्स्यपालन और पशुपालन गतिविधियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए केसीसी का विस्तार किया गयासाथ ही कॉलेटरल फ्री ऋण की सीमा को बढ़ाकर 1.6 लाख रुपए कर दिया गया। उधारकर्ताओंदूध संघों और बैंकों के बीच त्रिपक्षीय समझौते (टीपीएके मामले मेंकॉलेटरल फ्री ऋण 3 लाख रुपए तक जा सकता है। मत्स्यपालन और पशुपालन गतिविधियों के लिए क्रमशः 2024, 3.49 लाख केसीसी और 34.5 लाख केसीसी जारी किए गए।

 

6. भारत के झींगा उद्योग को मजबूत बनानाप्रजनन और वित्तीय सहायता में वृद्धि

भारत वर्तमान मेंवैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8% हिस्सेदारी और 174.45 लाख टन (2023-24) के रिकॉर्ड उच्च मछली उत्पादन के साथ दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। भारत जलीय कृषि उत्पादन में भी दूसरे स्थान पर है और दुनिया में शीर्ष झींगा उत्पादक और समुद्री भोजन निर्यात करने वाले देशों में से एक है। यह क्षेत्र 30 मिलियन से अधिक लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता हैजो ज्यादातर हाशिए पर और कमजोर समुदायों के हैं।

गुणवत्तापूर्ण बीज के लिए गुणवत्तापूर्ण ब्रूड की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिएवित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने झींगा ब्रूड स्टॉक के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर (एनबीसीका एक नेटवर्क स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता की घोषणा की। इसके अलावाझींगा पालनप्रसंस्करण और निर्यात के लिए नाबार्ड के माध्यम से वित्तपोषण की सुविधा प्रदान की जाएगी।

एनबीसी में अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना से उच्च उत्पादकता और गुणवत्ता के लिए जलीय कृषि प्रजातियों की आनुवंशिक गुणवत्ता में सुधार होगाझींगा ब्रूड स्टॉक के आयात पर निर्भरता कम होगी। झींगा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यह एक स्वागत योग्य कदम हैक्योंकि झींगा समुद्री खाद्य निर्यात में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। झींगा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 2011 के 8,175 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 40,013 करोड़ रुपये हो गया है। 2023-24 मेंजमे हुए झींगा का निर्यात 7.16 लाख टन थाजिसकी कीमत 40,013 करोड़ रुपये थी।

 

निष्कर्ष

सरकार की समग्र कृषि रणनीति का उद्देश्य अनुसंधान और विकास के माध्यम से उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाना हैनई उच्च उपज वाली फसल किस्मों को पेश करना है। यह एक करोड़ किसानों के लिए प्राकृतिक खेती की पहल को प्राथमिकता देता हैबायो-इनपुट केंद्र बनाता हैऔर दलहनों तथा तिलहनों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में काम करता है। डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और झींगा प्रजनन केंद्रों के लिए समर्थन जैसी पहल देश भर में कृषि कार्य प्रणालियों को आधुनिक बनाने और आगे बढ़ाने के प्रयासों पर जोर देती हैं।

संदर्भ