दमका की हवा में घुला जहर: मोरा गाँव का कच्चा सीवेज आठ साल से नाले में! 25 हज़ार ज़िंदगियों पर मंडरा रहा संकट, समुद्र का जीवन भी खतरे में
- आर.वी.9 न्यूज़ | रजनीश कुमार चंद्रवंशी
- दमका की शांति में उठी ‘सड़ांध की चीख’: 25,000 लोगों का सीवेज आठ वर्षों से कच्चे नाले में, ग्रामीणों का फूटा गुस्सा — ‘हम बीमारी नहीं, जीवन चाहते हैं!’
गुजरात के सूरत जनपद अंतर्गत चोर्यासी तहसील क्षेत्र का दमका गाँव, जो कभी समुद्री हवा की ताज़गी और शांति के लिए जाना जाता था, आज बदबू, बीमारी और बेबसी की मार से कराह रहा है। मोरा गाँव और आसपास के करीब 25,000 लोगों का अनुपचारित सीवेज पिछले आठ वर्षों से सीधे दमका के पास बने कच्चे नाले में बहाया जा रहा है। यह वही नाला है जो कुछ ही दूरी बाद अरब सागर में समा जाता है, और इस खतरनाक प्रवाह ने पूरे क्षेत्र की सेहत, पर्यावरण और आजीविका को डुबो दिया है।
दुर्गंध से हवा जहरीली, बीमारी का बढ़ता ख़तरा
कच्चे सीवेज ने न केवल दमका नाले को विषाक्त बना दिया है, बल्कि पूरे क्षेत्र में दुर्गंध और मच्छरों का तांडव ऐसा है कि लोग घरों में भी चैन से सांस नहीं ले पा रहे। नाले के किनारे से गुजरते लोग कुछ ही कदम में नाक पर हाथ रखने को मजबूर हो जाते हैं।
ग्रामीणों का फूटा गुस्सा — ‘अब कार्रवाई चाहिए, आश्वासन नहीं’
बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट से तंग आकर ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर, जिला विकास अधिकारी और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) को संयुक्त ज्ञापन सौंपा है। ग्रामीणों का साफ़ कहना है कि आठ साल का यह इंतजार अब मौत बनकर उनके सिर पर मंडरा रहा है।
अरब सागर का पारिस्थितिकी तंत्र भी ‘दम’ तोड़ रहा
दमका अरब सागर के तटीय क्षेत्र के बेहद करीब स्थित है। यहाँ से सीधा बहता हुआ यह मलजल समुद्री जलजीवों की जान ले रहा है। मछुआरों के अनुसार— “मछलियाँ मर रही हैं… जाल खाली लौट रहे हैं… हमारा समुद्र हमें अब पेट नहीं भर पा रहा।” समुद्र किनारे की तस्वीरें इस त्रासदी की गवाही देती हैं— जहाँ बड़ी संख्या में मृत मछलियाँ तट पर पड़ी मिलीं, लेकिन किसी भी स्थानीय अधिकारी या कर्मचारी की नजर तक नहीं गई। यह हाल न केवल पर्यावरण के लिए चेतावनी है, बल्कि मछुआरों की पीढ़ियों पुरानी आजीविका पर गहरा प्रहार है।
राहगीरों का भी जीना हुआ दुश्वार
इस मार्ग से गुजरने वाले लोगों का कहना है कि बदबू इतनी असहनीय है कि सड़क पर कुछ कदम चलना भी मुसीबत बन चुका है। सीवेज का यह ‘विषैला बहाव’ अब पूरे क्षेत्र को पर्यावरणीय आपदा की ओर धकेल रहा है।
अंतिम सवाल—कब जागेगी व्यवस्था?
आठ वर्षों से जारी यह ‘खामोश तबाही’ अब अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। ग्रामीणों की मांग साफ़ है—“जीपीसीबी और प्रशासन तत्काल कार्रवाई करे, वरना यह प्रदूषण पूरे क्षेत्र को बीमारियों के दलदल में धकेल देगा।” दमका की हवा, नाला, समुद्र—सब मदद के लिए पुकार रहे हैं। अब देखना यह है कि शासन-प्रशासन इस पुकार को कब तक अनसुना करता है, और क्या 25,000 लोगों की यह त्रासदी आखिरकार किसी समाधान तक पहुँच पाती है या नहीं।






