बीमार पिता का सहारा बनी बेटी — तीन दिनों की जद्दोजहद के बाद सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट ने बचाई 45 वर्षीय पिता की जान, मानवता की मिसाल बनी नंदनी

बीमार पिता का सहारा बनी बेटी — तीन दिनों की जद्दोजहद के बाद सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट ने बचाई 45 वर्षीय पिता की जान, मानवता की मिसाल बनी नंदनी
  • आर.वी.न्यूज़ संवाददाता, चंद्रप्रकाश मौर्य

गोरखपुर | मंगलवार — दर्द, संघर्ष और मानवता से भरी एक दिल छू लेने वाली कहानी

गोरखपुर से एक ऐसी मार्मिक घटना सामने आई है जिसने मानवता, बेटी के कर्तव्य और समाज की संवेदनशीलता को नए सिरे से परिभाषित किया है। पटरी पर लाचार हालात में जी रहे 45 वर्षीय करीमन साहनी न केवल गंभीर रूप से बीमार थे, बल्कि उनका पैर भी फैक्चर हो चुका था। पत्नी का साया पहले ही छिन चुका था और बड़े बेटे ने भी साथ छोड़ दिया था। उनके पास सिर्फ एक चीज बची थी — बेबसी। लेकिन इस बेबसी के अंधेरे में उम्मीद की किरण बनकर सामने आई उनकी बेटी नंदनी साहनी, जो मुंबई में रहती है। जैसे ही उसे खबर मिली कि पिता की हालत गंभीर है, उसने बिना एक पल गँवाए ट्रेन पकड़ी और गोरखपुर पहुँची। वहां पहुंचते ही उसने अपने पिता को तुरंत बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने बताया—मरीज का हिमोग्लोबिन मात्र 5, हालत बेहद नाजुक।


बेटी की दौड़-भाग: तीन दिन तक खून के लिए संघर्ष, कोई मदद नहीं

मरीज के दामाद ने तुरंत आगे आकर एक यूनिट रक्त दान किया और अपने भाई से भी आग्रह किया। मगर वह ससुराल जाने के बाद मोबाइल बंद करके गायब हो गया। इस बीच, बेटी नंदनी तीन दिनों तक खून की व्यवस्था के लिए दर-दर भटकती रही— ब्लड बैंक, परिचित, रिश्तेदार… किसी से कोई मदद नहीं मिली। उसकी आँखों में डर था, दिल में पिता को बचाने की तड़प। लेकिन समाधान कहीं नजर नहीं आ रहा था।


उम्मीद की किरण: सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट का मानवता भरा हस्तक्षेप

इसी निराशा के बीच नंदनी की मुलाकात हुई सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट की महिला अध्यक्ष शालिनी दुबे से। उन्होंने परिस्थिति को समझते ही तुरंत ट्रस्ट के संस्थापक/संचालक सच्चिदा नंद मौर्या से संपर्क किया। ट्रस्ट ने बिना समय गंवाए मदद की जिम्मेदारी उठाई। और फिर शुरू हुआ वह क्षण — रक्तवीर अविनाश चौधरी के अस्पताल पहुँचने का। उन्होंने तुरंत रक्तदान किया, और डॉक्टरों ने बताया कि इस रक्त से मरीज की हालत स्थिर हुई और उसकी जान बच गई। यह सिर्फ रक्तदान नहीं था—यह एक जिंदगी को बचाने वाला अद्भुत मानवता का कार्य था।


"किसका खून किसके काम आ जाए, कोई नहीं जानता" — सच हुआ

आज एक बार फिर यह पंक्ति सच साबित हुई कि इंसानियत की ताकत सबसे बड़ी होती है। सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट ने न केवल एक मरीज को जीवन दिया, बल्कि पूरे समाज को संदेश भी दिया कि— “हर घर में एक रक्तवीर होना जरूरी है।”


निष्कर्ष: बेटियाँ ही असली सहारा — समाज के लिए एक भावुक सीख

नंदनी ने दिखा दिया कि दहेज नहीं, बेटी बचाओ — क्योंकि बेटियाँ ही असली संतान हैं, जो मुश्किल वक्त में पिता का सहारा बनती हैं। सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट ने भी यह सिद्ध किया कि
मानवता अभी जिंदा है और सही समय पर साथ देने वाले लोग आज भी समाज में मौजूद हैं।


सी स्काई फाउंडेशन ट्रस्ट

संचालक/संस्थापक – सच्चिदा नंद मौर्या